ये सारी बातें चाहत की यूँ ही करता रहूँगा मोहब्बत में मगर कुछ कुछ कमी करता रहूँगा मिरी नज़रों में है जुग़राफ़िया उस के बदन का तसव्वुर बाँध लूँगा शाइ'री करता रहूँगा मिलेगा जब तलक मुझ को न वो जान-ए-तमन्ना मैं सब कामों को अपने मुल्तवी करता रहूँगा मिलूँ जिस से ख़फ़ा दो दिन में कर देता हूँ उस को मैं आख़िर ता-कुजा ये अब्लही करता रहूँगा तू अपना दिल न छोटा कर लहू है तन में जब तक मैं रोज़-ओ-शब तिरी खेती हरी करता रहूँगा कोई आए न खोलूँगा मैं अब दरवाज़ा-ए-दिल सुनूँगा दस्तकें और अन-सुनी करता रहूँगा जुनूँ में कर के कुछ उस को दिखाना भी तो होगा मैं कब तक उस से वा'दे काग़ज़ी करता रहूँगा ब-जुज़ कार-ए-हुनर मैं कर भी क्या सकता हूँ 'नजमी' यही करता रहा हूँ और यही करता रहूँगा