ये सितम इक ख़्वाहिश-ए-मौहूम पर लुत्फ़ फ़रमा ख़ातिर-ए-मग़्मूम पर ऐ मसर्रत मेरे ग़म-ख़ाने से दूर ये गिरानी और मिरे मक़्सूम पर पुर्सिश-ए-हालात-ए-ग़म से दरगुज़र रहम फ़रमा अब दिल-ए-मरहूम पर बंदा-परवर सिर्फ़ इतनी अर्ज़ थी फ़र्ज़ कुछ ख़ादिम के हैं मख़दूम पर सब्र करती ही रही बे-चारगी ज़ुल्म होता ही रहा मज़लूम पर क्या मुबस्सिर दीदा-ए-ख़ूँ-बार था तब्सिरा करता रहा मक़्सूम पर इक तबस्सुम था जवाब-ए-आरज़ू वुसअतें क़ुर्बां हुईं मफ़्हूम पर इब्तिदा-ए-ग़म की दूर-अंदेशियाँ शाद हों अंजाम-ए-ना-मा'लूम पर आज तक 'अकबर' हूँ मैं साबित-क़दम जादा-ए-ख़ुद्दारी-ए-मौहूम पर