ये तमन्ना है कि अब और तमन्ना न करें शेर कहते रहें चुप चाप तक़ाज़ा न करें इन बदलते हुए हालात में बेहतर है यही आईना देखें तो ख़ुद अपने को ढूँडा न करें तू गुरेज़ाँ रही ऐ ज़िंदगी हम से लेकिन कैसे मुमकिन है कि हम भी तुझे चाहा न करें इस नए दौर के लोगों से ये कह दे कोई दिल के दुखड़ों का सर-ए-आम तमाशा न करें