ये तर्ज़-ए-जौर ये अंदाज़-ए-दिल दिखाने के वो पूछते हैं हमारे हो या ज़माने के हमारे घर को लगी आग जिन चराग़ों से क़ुसूर-वार हमी थी उन्हें जलाने के वो जिन के वास्ते ठुकरा दिया ज़माने को वो दे रहे हैं मुझे वास्ते ज़माने के हमारे अहद की तारीख़ हम से मत पूछो वो वाक़िआ'त नहीं हैं सुनाए जाने के मैं दे रहा था उन्हें दर्स ज़िंदगानी का वो कर रहे थे बहाने मुझे मिटाने के हुज़ूर जुर्म-ओ-सज़ा तो बस इक बहाना है हमी थे अहल सलीबें नई सजाने के