ये तिरे हुस्न का आवेज़ा जो महताब नहीं का'बा-ए-इश्क़ नहीं रौज़ा-ए-यक-ख़्वाब नहीं एक कोलाज़ बनाती है तिरी ख़ामोशी ख़त-ए-इंकार नहीं सूरत-ए-ईजाब नहीं कोहर की रेहल पे और धुँद के जुज़दान में वो इक सहीफ़ा है कि जिस पर कोई एराब नहीं इक कहानी के पस-ओ-पेश तिरी आहट है घास के कुंज नहीं काई के तालाब नहीं तेरे पा-पोश मिरा तकिया तिरा जिस्म-ए-हरम इस से ज़ियादा तो निगह वाक़िफ़-ए-आदाब नहीं आइनों की है कोई बाढ़ मिरे रस्ते में सद्द-ए-अफ़्लाक नहीं चादर-ए-अस्बाब नहीं शक्ल जो मुझ पे परिस्तान के दर खोलती है रौनक़-ए-हुजरा नहीं ज़ीनत-ए-मेहराब नहीं ये ज़मानों की अदाएँ ये जहानों का सुलूक ऐसे लोगों से जो इस अहद में कमयाब नहीं दिल बहे जाता है किस रौ के बहाव में कि वो शिद्दत-ए-हिज्र नहीं तुंदी-ए-सैलाब नहीं तेरी आँखों में मिरी नींद का तेज़ाब नहीं तेरे होंटों पे मिरे होंट हैं और ख़्वाब नहीं ख़ून से अट गईं शाहराहें पेशावर तेरी दोश पे दर्रों के अब चादर-ए-कम-ख़्वाब नहीं