ये तो गिला नहीं है कि दिल को सुकूँ नहीं लेकिन सुकूँ तो चारा-ए-दर्द-ए-दरूँ नहीं आँखों में बे-क़रार कोई मौज-ए-ख़ूँ नहीं शायद अभी बहार पे ज़ख़्म-ए-दरूँ नहीं हर साँस दे रहा था ब-ज़ाहिर पयाम-ए-ज़ीस्त लेकिन मिरा गुमान यही है कि हूँ नहीं मिलता है दिल को तेरी गली में सुकून सा क्या इस ज़मीन पर फ़लक-ए-नीलगूँ नहीं ऐ अक़्ल साथ रह कि पड़ेगा तुझी से काम राह-ए-तलब की मंज़िल-ए-आख़िर जुनूँ नहीं अब तक रफ़ू गुलों के गरेबाँ न हो सके इस गुल्सिताँ में पुर्सिश-ए-अहल-ए-जुनूँ नहीं मुझ को 'निसार' ज़ो'म-ए-नज़र ने किया ख़राब जल्वे तो हर क़दम पे पुकारे कि यूँ नहीं