ये तो हम कह नहीं सकते वो हम-आग़ोश रहा हाँ मगर दिल में हमारे कोई रू-पोश रहा छा गया बज़्म में साक़ी का ये अंदाज़-ए-बयाँ अपनी सी कह गया हर एक वो ख़ामोश रहा कहते हैं सच है हमें देख के बे-ख़ुद हुए तुम टिकटिकी बाँध के देखा किए ये होश रहा कह दिया आँखों ने सब हाल हमारा उन से और जिस दिल से थी उम्मीद वो ख़ामोश रहा बुत-कदा हो गया सुनसान तिरे जाने से उम्र भर ख़ाना-ए-कअबा भी सियह-पोश रहा चाहने वालों का चुन चुन के किया काम तमाम बार-ए-उल्फ़त से हमेशा वो सुबुक-दोश रहा सब की उल्फ़त से तो इंकार किया उस ने मगर 'मस्त' का नाम जब आया तो वो ख़ामोश रहा