नुक़ूश-ए-पा में तजल्ली वजूद की बाबा तमाम राह में ख़ुशबू है ऊद की बाबा तिलिस्मी हाले में रहता है माह-ए-आज़ादी अजीब सूरतें देखीं क़ुयूद की बाबा ये आँधियाँ न बुझा दें चराग़-ए-दिल की लौ कि है शनाख़्त ये अपने वजूद की बाबा क़ुलूब-ए-दीदा-वराँ को लहू रुलाती है रग-ए-हयात में गर्दिश जुमूद की बाबा यूँ ख़ार-ज़ार में खींचो न रूह का दामन मुझे हवस नहीं नाम-ओ-नुमूद की बाबा कभी कभी तो हबाब-ए-मुहीत-ए-फ़िक्र में भी मिली हैं वुसअ'तें चर्ख़-ए-कबूद की बाबा तजल्ली-ज़ार हुआ है ग़ज़ल का आईना ये बरकतें हैं सलाम-ओ-दरूद की बाबा 'मतीन' वक़्त ने कैसे ये दिन दिखाए हैं हैं चार रोटियाँ क़ीमत सुजूद की बाबा