ये तो माना कि तुम्हें ग़ैर से निस्बत कैसी हो रही है सर-ए-बाज़ार ये शोहरत कैसी आप की ख़ाम-ख़याली है फ़क़त हज़रत-ए-दिल वो 'अदावत भी नहीं रखते मोहब्बत कैसी दर्द-ए-फ़ुर्क़त भी हुआ शामिल-ए-रश्क-ए-अग़्यार ये मुसीबत में नई और मुसीबत कैसी भोले-भाले हैं सितम उन को कहाँ से आया मुफ़्त में लोग लगाते हैं ये तोहमत कैसी चाहने वाले निराले हैं तिरे दुनिया से जान क़ुर्बान करें तुझ पे ये दौलत कैसी वस्फ़-ए-अग़्यार वो मुझ से ही बयाँ करते हैं देखिए सूझी है ये उन को शरारत कैसी मुद्द'आ ये है कि तड़पा ही करे फ़ुर्क़त में वो जताते हैं मोहब्बत दम-ए-रुख़्सत कैसी वस्ल में शरफ़ ने छोड़ा था ब-मुश्किल दामन दरमियाँ हो गई हाइल ये नज़ाकत कैसी ख़ुद-बख़ुद प्यार जिसे देखते ही आता है प्यारी प्यारी है ख़ुदा रक्खे वो सूरत कैसी जो तिरी चाल से बरपा हो वो फ़ित्ना कैसा जो तिरी राह से उट्ठे वो क़यामत कैसी ख़ाना-ए-दहर है गोया कि मुसाफ़िर-ख़ाना ग़ाफ़िलो नींद सर-ए-बिस्तर-ए-राहत कैसी वो तो आए थे मगर मैं न उन्हें रोक सका हाथ आ कर मिरे जाती रही दौलत कैसी ख़्वाहिश-ए-वस्ल पे वो शोख़ ये हँस कर बोला चुटकियाँ लेती रहे दिल में वो हसरत कैसी मय हो मा’शूक़ बग़ल में हो जनाब-ए-वा’इज़ देखिए फिर कि बहलती है तबी'अत कैसी लाख ‘इशरत के हों सामान मगर ऐ 'हाजिर' राहत-ए-जाँ न बग़ल में हो तो राहत कैसी