ये उम्र-ए-सद-बला जो अपने ही सर गई है थोड़ी गुज़ार लेंगे थोड़ा गुज़र गई है या मूँद लीं हैं आँखें या मुँद गईं हैं आँखें तुझ पर पस-ए-तमाशा क्या क्या गुज़र गई है मुमकिन नहीं है शायद दोनों का साथ रहना तेरी ख़बर जब आई अपनी ख़बर गई है शोर-ए-ख़िज़ाँ है घर में दीवार-ओ-बाम-ओ-दर में दर पर सवारी कल आ कर ठहर गई है मालूम ही नहीं है कुछ फ़र्क़ ही नहीं है ये दिन गुज़र गया है या शब गुज़र गई है हर गुल-बदन को तकना आँखों से चूम रखना दीवानगी हमारी हद से गुज़र गई है