काम अब कोई न आएगा बस इक दिल के सिवा रास्ते बंद हैं सब कूचा-ए-क़ातिल के सिवा बाइस-ए-रश्क है तन्हा-रवी-ए-रह-रव-ए-शौक़ हम-सफ़र कोई नहीं दूरी-ए-मंज़िल के सिवा हम ने दुनिया की हर इक शय से उठाया दिल को लेकिन एक शोख़ के हंगामा-ए-महफ़िल के सिवा तेग़ मुंसिफ़ हो जहाँ दार-ओ-रसन हों शाहिद बे-गुनह कौन है उस शहर में क़ातिल के सिवा जाने किस रंग से आई है गुलिस्ताँ में बहार कोई नग़्मा ही नहीं शोर-ए-सलासिल के सिवा