ये ज़रूरी है नज़र सब की टटोली जाए बाद में ज़ुल्फ़-ए-सुख़न बज़्म में खोली जाए बोल उट्ठेगा हर इक हर्फ़ सुख़न का अपने हाँ मगर नोक-ए-क़लम दिल में डुबो ली जाए रौशनी इतनी ज़ियादा है गली में उस की कोशिशें लाख करूँ आँख न खोली जाए उस को वहशी भी समझ लेते हैं आसानी से प्यार की बोली किसी बोली में बोली जाए ए'तिबार अपना बहर-हाल वो खो देती है बात जो दिल के तराज़ू में न तोली जाए वक़्त गुज़रा तो कोई फ़ैज़ न हासिल होगा फ़स्ल वो फ़स्ल है जो वक़्त पे बो ली जाए 'नूर' मिलती है कहाँ नर्म-मिज़ाजी सब को चीज़ अच्छी है तबीअत में समो ली जाए