ये ज़ीस्त आसान हो कितनी इबादत साथ रहती है मोहब्बत मर नहीं सकती मोहब्बत साथ रहती है किसी आमिल ने बोला था मिरी रूदाद सुन के ये मियाँ ये ऐश ममनूअ' है ज़रूरत साथ रहती है मिरी क़ीमत मिरी तस्लीम के गौहर में पिन्हाँ है ये क़िस्मत कब सुधरती है मुसीबत साथ रहती है दम-ए-रुख़्सत जो हँसते हैं वही रोते हैं ख़ल्वत में गिराए लाख पर्दे हों हक़ीक़त साथ रहती है 'सियह' का'बे बहुत देखे बड़े सज्दे किए लेकिन अक़ीदत कब भटकती है अक़ीदत साथ रहती है