यूँ भी कोई अपना ख़सारा करता है अपनी रज़ा से बाज़ी हारा करता है दूर चला आऊँ तो ये महसूस करूँ शायद कोई मुझे पुकारा करता है कभी डरा करता था ये भी दुनिया से अब तो दिल बे-ख़ौफ़ गुज़ारा करता है जो फूलों की ख़ुशबू का शैदाई है वो ही सूना बाग़ हमारा करता है चाँद सितारों को क्या इस का इल्म भी है कोई उन पर आँखें वारा करता है पहले सरकश दरिया ख़ूब डराता है बा'द में मुझ को पार उतारा करता है बोया करता है वो बीज ज़मीनों में और फिर उन में ज़हर उतारा करता है