यूँ भी तो सताया है तिरी जल्वागरी ने आँखें न मिलाईं मिरी बालिग़-नज़री ने मिन्नत-कश-ए-पिंदार-ए-जुनूँ है दिल-ए-पुर-ख़ूँ उन का भी सहारा न लिया बे-ख़बरी ने ऐ हुस्न-ए-दिल-आरा तिरी इक एक अदा को परवान चढ़ाया मिरी हैरत-नगरी ने थी मरहला-ए-सख़्त वो मंज़िल कि जहाँ पर तुम को भी सँभाला मिरी आशुफ़्ता-सरी ने तुम ख़ुद ही चले आओगे शायद सर-ए-मंज़िल इक राह निकाली है मिरी दर-बदरी ने ऐ ख़स्तगी-ए-इश्क़ चमन में तो गुज़र कर फूलों का भी रक्खा है भरम जामा-दरी ने दिन रात किए एक वो तूफ़ान उठाया ग़ुंचों के लिए मौज-ए-नसीम-सहरी ने अफ़्सोस उन्हें ज़ौक़-ए-नज़र ही ने गिराया पर्दे जो उठाए थे मिरी दीदा-वरी ने चुप हैं मह-ओ-मिर्रीख़ ज़मीं है मुतबस्सिम खींचा है ज़रा तूल उमीद-ए-बशरी ने हैरत मुझे इस पर है 'शहाब'-ए-सुख़न-आरा ताका न तुझे वसवसा-ए-नामवरी ने