यूँ दिल-ए-दीवाना को अक्सर सज़ा देता हूँ मैं अपनी बर्बादी पे ख़ुद ही मुस्कुरा देता हूँ मैं अपने दिल के ख़ून से वो गुल खिला देता हूँ मैं रेगज़ारों को गुलिस्ताँ की अदा देता हूँ मैं ऐसी मंज़िल पर मुझे पहुँचा दिया है इश्क़ ने मेरा जो क़ातिल है उस को भी दुआ देता हूँ मैं क्यूँ किसी का नाम ले कर इश्क़ को रुस्वा करूँ अपने दिल की आग को ख़ुद ही हवा देता हूँ मैं ज़िक्र यूँ करता हूँ अपने ग़म का अपने दर्द का होश वालों को भी दीवाना बना देता हूँ मैं क्या गुज़रती है मिरे दिल पर ख़ुदारा कुछ न पूछ दुश्मनों को जब तलक घर का पता देता हूँ मैं अपनी ही आवाज़ ख़ुद लगती है मुझ को अजनबी जब अकेले में कभी तुझ को सदा देता हूँ मैं नश्तर-ए-याद-ए-ग़म-ए-जानाँ से 'क़ैसर' इन दिनों ज़ख़्म जो सोते हैं उन को फिर जगा देता हूँ मैं