यूँ गुज़रे चमन से कि गुलिस्ताँ नहीं देखा काँटों पे चले और बयाबाँ नहीं देखा उस शम्अ' पे जलने को तड़पते हैं पतंगे जिस शम्अ' को आँखों से फ़रोज़ाँ नहीं देखा रक़्साँ है यहाँ नूर-ब-कफ़ जल्वा-ए-जानाँ क्या तू ने अभी दीदा-ए-हैराँ नहीं देखा होने को तो था 'नूर' के दिल में भी बड़ा दर्द लेकिन कभी चेहरे से नुमायाँ नहीं देखा