यूँ ही गुज़रे न रात ख़ुशियों की कुछ तो कर हम से बात ख़ुशियों की थाम लो तुम ख़ुशी के दामन को मुख़्तसर है हयात ख़ुशियों की छोड़ कर ग़म के तज़्किरे सारे आओ छेड़ेंगे बात ख़ुशियों की ग़म न आए तुम्हारी क़िस्मत में गर निकालो ज़कात ख़ुशियों की मैं ने अपनों पे ए'तिमाद किया लुट गई काएनात ख़ुशियों की जीना सीखो हर एक लम्हे को ग़म लगाए हैं घात ख़ुशियों की हक़-पसंदी है बस मता-ए-हयात है यही काएनात ख़ुशियों की जा के फ़ाराँ पे देखना 'हस्सान' इक हसीं काएनात ख़ुशियों की