यूँ इंतिक़ाम तुझ से फ़स्ल-ए-बहार लेंगे फूलों के सामने हम काँटों के प्यार लेंगे जाने दो हम को तन्हा तूफ़ान-ए-आरज़ू में जब डूबने लगेंगे तुम को पुकार लेंगे जो कुछ था पास अपने दुनिया ने ले लिया है इक जान रह गई है वो ग़म-गुसार लेंगे इस दौर-ए-तिश्नगी में क्या मय-कदे को छोड़ें कुछ दिन गुज़र गए हैं कुछ दिन गुज़ार लेंगे सय्याद ओ बाग़बाँ के तेवर बता रहे हैं ये लोग फ़स्ल-ए-गुल के कपड़े उतार लेंगे