यूँ ज़िंदगी गुज़र रही है मेरी जो उन की है वही ख़ुशी है मेरी देखे थे फ़र्श-ए-गुल के ख़्वाब लेकिन शोलों से रह-गुज़र सजी है मेरी मैं लम्हा लम्हा जाता रहा हूँ आँखों से नींद उड़ गई है मेरी यारों में मिल सका न कोई तुझ सा कहने को सब से दोस्ती है मेरी आँखों में झाँक कर न देखा तुम ने लोगों से दास्ताँ सुनी है मेरी घेरे हैं अन-गिनत हसीन यादें तन्हाई मुझ से छीन ली है मेरी