वो एक सज्दा कि जो बे-रुकूअ' होता है अजब मक़ाम-ए-ख़ुशू-ओ-ख़ुज़ूअ' होता है बिसात उलटती है शब की सितारे बुझते हैं चराग़ गुल करो सूरज तुलूअ' होता है मोअर्रिख़ों से कहो लिक्खें इक नई तारीख़ वो आसमान ज़मीं से रुजूअ' होता है ज़बान मिलती है धड़कन को इस्तिआरों की बयान दिल का महल्ल-ए-वक़ूअ' होता है