यूँ ख़लाओं में निहायत ग़ौर से देखा न कर मेरे बारे में मिरी जाँ इस क़दर सोचा न कर बंदगी को लोग दे लेते हैं कमज़ोरी का नाम इज्ज़ अच्छा है मगर तू ख़ुद को नक़्श-ए-पा न कर हो सके तो दिल में पैदा कर मोहब्बत का ख़याल ये मुक़द्दस लफ़्ज़ सत्ह-ए-आब पर लिखा न कर रेज़ा रेज़ा हो रहे हैं आईने इख़्लास के अपनी आँखों से ये मंज़र देख पर शिकवा न कर दे सके तुझ को कभी तेरी वफ़ाओं का जवाब उस हवाले से कभी रुख़ जानिब-ए-दुनिया न कर जिन की ताबीरें नहीं मुमकिन कभी सुल्तान-'रश्क' हो सके तो इस तरह के ख़्वाब भी देखा न कर