यूँ खुले बंदों मोहब्बत का न चर्चा करना बात दिल की है उसे सोच के रुस्वा करना दुश्मनी मोल तो ले सकते हैं पल में सब से सख़्त दुश्वार है इक रब्त का पैदा करना दोस्ती ज़र्फ़-ओ-यक़ी की है कठिन राह-गुज़र सोच कर इस से गुज़रने का इरादा करना कल कोई शख़्स सर-ए-राह ये देता था सदा हो सके तो ग़म-ए-दौराँ का मुदावा करना सब के बस का तो नहीं रोग ये हरगिज़ हरगिज़ दर्द के घोर अंधेरों में उजाला करना ख़ुद की तन्हाई ऐ 'अफ़सर' है मुक़द्दर लेकिन अपनी एहसास की सम्तों को न तन्हा करना