यूँ लग रहा है जैसे कोई आस-पास है वो कौन है जो है भी नहीं और उदास है मुमकिन है लिखने वाले को भी ये ख़बर न हो क़िस्से में जो नहीं है वही बात ख़ास है माने न माने कोई हक़ीक़त तो है यही चर्ख़ा है जिस के पास उसी की कपास है इतना भी बन-सँवर के न निकला करे कोई लगता है हर लिबास में वो बे-लिबास है छोटा बड़ा है पानी ख़ुद अपने हिसाब से उतनी ही हर नदी है यहाँ जितनी प्यास है