यूँ न जान अश्क हमें जो गया बाना न मिला दूर ले जाए जो मुझ से कोई ऐसा न मिला ख़ाली हाथ अब के गुज़रने न दी पेड़ों ने बसंत पतझड़ आई तो किसी शाख़ पे पत्ता न मिला अपना साया ही डराता हो तो किस से कहिए कहिए किस मुँह से कि किस को कोई अपना न मिला आइना देखने ठहरे तो नज़र काँप गई और जो अक्स हमीं को हमें ऐसा न मिला आँख में दरिया लिए फिरते रहे बरसों तक जिस के सीने में उतर जाता वो सहरा न मिला दर खुला था तो हवा प्यार लिए आई थी बंद है तो उसे बाहर कोई अपना न मिला अपना ही जिस्म बदल जाएगा कब इल्म था 'अश्क' उठ्ठे तो कल जहाँ सोए थे वो कमरा न मिला