यूँ सितम की न इंतिहा कीजे तौबा कीजे ख़ुदा ख़ुदा कीजे प्यार में ख़म है ये सर-ए-तस्लीम आप अब जानिए कि क्या कीजे क़र्ज़ कोई भी हम नहीं रखते आप चाहत की इंतिहा कीजे तोड़ कर शीशा-ए-यक़ीं मेरा लुत्फ़-ए-आज़ार कुछ सिवा कीजे ख़्वाहिशें दिल में जब सुलगती हों कैसे जीने का आसरा कीजे जान लीजे कि साथ है 'अफ़रोज़' आप जब जब मुझे सदा कीजे