यूँ तो बहुत हसीं है बहार-ए-चमन की याद दिल पर मगर है नक़्श इसी अंजुमन की याद हम ख़ुद ग़म-ए-हयात से सीना-फ़िगार हैं ऐ दोस्तो दिलाओ न उस गुल-बदन की याद इस इंतिहा-ए-तल्ख़ी-ए-दौराँ के बावजूद ताज़ा है आज भी किसी शीरीं-दहन की याद फिर जी में है कि खाइए कोई नया फ़रेब फिर आ रही है इक बुत-ए-वा'दा-शिकन की याद रंगीन बादलों के ये टुकड़े ये चाँदनी अक्सर दिला गए हैं तिरे बाँकपन की याद उलझन ग़म-ए-हयात की कुछ और बढ़ गई आई है जब भी ज़ुल्फ़ शिकन-दर-शिकन की याद 'अरशद' दयार-ए-ग़ैर में सब कुछ लुटा के हम दिल से लगाए फिरते हैं अपने वतन की याद