यूँ तो किस फूल से रंगत न गई बू न गई ऐ मोहब्बत मिरे पहलू से मगर तू न गई मिट चले मेरी उमीदों की तरह हर्फ़ मगर आज तक तेरे ख़तों से तिरी ख़ुशबू न गई कब बहारों पे तिरे रंग का साया न पड़ा कब तिरे गेसुओं को बाद-ए-सहर छू न गई तिरे गेसू-ए-मोअम्बर को कभी छेड़ा था मेरे हाथों से अभी तक तिरी ख़ुशबू न गई