यूँही कटे न रहगुज़र-ए-मुख़्तसर कहीं पड़ते हैं पाए शौक़ कहीं और नज़र कहीं मौहूम-ओ-मुख़्तसर सही पेश-ए-नज़र तो है देखा किसी ने ख़्वाब ये बार-ए-दिगर कहीं माइल-ब-जुस्तुजू हैं अभी अहल-ए-इश्तियाक़ दुनियाएँ और भी हैं वरा-ए-नज़र कहीं बाक़ी अभी क़फ़स में है अहल-ए-क़फ़स की याद बिखरे पड़े हैं बाल कहीं और पर कहीं अब हम हैं और तिलिस्म-ए-तमन्ना की वुसअ'तें ढूँडे से भी न मिल सकी राह-ए-मफ़र कहीं हर फ़ासला है जल्वा-गह-ए-मौज-ए-इत्तिसाल या'नी जबीन-ए-शौक़ कहीं संग-ए-दर कहीं सदियों का इज़्तिराब 'तमन्नाई' सौंप दूँ मिल जाए कोई लम्हा-ए-फ़ुर्सत अगर कहीं