यूँही कुफ़्र हर सुब्ह हर शाम होगा इलाही कभू याँ भी इस्लाम होगा कहीं काम में वो तो ख़ुद-काम होगा यहाँ काम आख़िर है वाँ काम होगा यही दिल अगर है यही बे-क़रारी तह-ए-ख़ाक भी ख़ाक आराम होगा सनम तीन पाँच आप का चार दिन है सदा एक अल्लाह का नाम होगा ये मिज़्गाँ वो हैं जिन की काविश से इक दिन मुशब्बक जिगर मिस्ल-ए-बादाम होगा बुतो जब कि आग़ाज़-ए-उल्फ़त है ये कुछ ख़ुदा जाने क्या इस का अंजाम होगा दुआ के एवज़ गालियाँ और तो क्या इनायात यही मुझ को इनआ'म होगा ये दो इक बला हैं गिरफ़्तार उन का कोई सुब्ह होगा कोई शाम होगा यही सुब्ह और शाम तक गर अमल है अमल तेरी ज़ुल्फ़ों का ता-शाम होगा मैं वो ना-तवाँ हूँ अगर ज़ब्ह कीजे न इक नाला मुझ से सर-अंजाम होगा जू बिस्मिल तू करता है बिस्मिल्लाह ऐ शोख़ तिरे काम में मेरा भी काम होगा मिरी लग रहीं छत से आँखें हैं देखो मुशर्रफ़ कब इस से लब-ए-बाम होगा कभू तू भी होगा मुसलमान ऐ बुत सदा तेरा झूटा ही पैग़ाम होगा शिकार-ए-अजल होंगे इक रोज़ हम सब हमेशा न रुस्तम न याँ साम होगा कहाँ है वो सैद-अफ़गनी गोर में आह ख़ुदा जाने क्या हाल-ए-बहराम होगा न सुन मेरी 'एहसाँ' मुबारक तुझे इश्क़ मुझे क्या तिरा नाम बदनाम होगा