यूँ हसरतों की गर्द में था दिल अटा हुआ जैसे दरख़्त से कोई पत्ता गिरा हुआ हो ही गया है नब्ज़-शनास-ए-ग़म-ए-जहाँ सीने में इश्क़ के मिरा दिल काँपता हुआ मिलता सुराग़-ए-ख़ाक मुझे मेरे साए का हर सम्त ज़ुल्मतों का था जंगल उगा हुआ कल रात ख़्वाब में जो मुक़ाबिल था आइना मेरा ही क़द मुझे नज़र आया बढ़ा हुआ जाने भी दो वो चाँद नहीं होगा कोई और पामाल आदमी जो हुआ चाँद क्या हुआ बाहर के शोर-ओ-ग़ुल ही से शायद वो बोल उठे बैठा है कब से चुप कोई अंदर छुपा हुआ पंछी उड़ा तो ख़त्म भी हो जाएगा 'ज़िया' साँसों के आने-जाने का ताँता बँधा हुआ