तू ने नज़रों को बचा कर इस तरह देखा मुझे क्यूँ न कर जाता भरी महफ़िल में दिल तन्हा मुझे शाख़-दर-शाख़ अब कोई ढूँडा करे पत्ता मुझे मैं तो ख़ुद टूटा हूँ आँधी ने नहीं तोड़ा मुझे लग़्ज़िश-ए-पा ने दिया हर राह में धोका मुझे ता-दर-ए-मंज़िल तू ही ऐ जज़्ब-ए-दिल पहुँचा मुझे सूरत-ए-आईना हैरत से वो तकता रह गया आइना-ख़ाने में जिस ने ग़ौर से देखा मुझे मार ही डालेगी इक दिन कारोबार-ए-ज़ीस्त में तंग-दामानी तिरी ऐ वुसअत-ए-दुनिया मुझे उम्र-भर मिलती रही तेरी अदालत से न पूछ मेरी ना-कर्दा-गुनाही की सज़ा क्या क्या मुझे बर्ग-ए-गुल पर रक़्स-ए-शबनम का ये मंज़र ऐ 'ज़िया' अब तो आता है नज़र हर क़तरे में दरिया मुझे