यूँ सारी उम्र ज़ीस्त के दरमाँ में रह गए दामन सिला तो चाक गरेबाँ में रह गए तहरीर कर सके न सफ़र-नामा-ए-हयात हर मोड़ पर तअ'य्युन-ए-उनवाँ में रह गए मंज़िल को कुछ न राह की सौग़ात दे सके जो आबले थे ख़ार-ए-मुग़ीलाँ में रह गए काँटे चुभन मलाल थकन और बे-कसी क्या क्या थे हम-सफ़र जो बयाबाँ में रह गए कब मौसम-ए-बहार गया कुछ पता नहीं ऐसा उलझ के जैब-ओ-गरेबाँ में रह गए इल्ज़ाम ये बजा है तिरा ऐ ख़याल-ए-दोस्त हम दिल-नवाज़ी-ए-ग़म-ए-दौराँ में रह गए शाना-कशों ने दिल को भी शाना बना दिया ख़म फिर भी कितने गेसु-ए-दौराँ में रह गए इक एक कर के दाग़-ए-जिगर दे रहे थे लौ यूँ सारी रात जश्न-ए-चराग़ाँ में रह गए रिंदों ने अपने ख़ून से मक़्तल सजा दिए वाइज़ सुरूर-ए-बादा-ए-इरफ़ाँ में रह गए हम को तो ज़िंदगी तह-ए-ख़ंजर ही मिल गई सब जुस्तुजू-ए-चश्मा-ए-हैवाँ में रह गए 'नातिक़' कहाँ है सफ़हा-ए-क़िर्तास को ख़बर कितने ख़याल ज़ह्न के ज़िंदाँ में रह गए