यूँ तो हर दाग़ तुझे हम ने दिखाया भी नहीं लेकिन ऐ दोस्त कोई राज़ छुपाया भी नहीं ये तो सच है कि हक़ीक़त की तरह याद नहीं ख़्वाब की तरह मगर तुझ को भुलाया भी नहीं क्यों गले मिलते हैं रह रह के हवादिस मुझ से मुझ पे जो गुज़री है वो मैं ने बताया भी नहीं कोई बतलाओ करें किस तरह अपनों की तलाश ऐसी मंज़िल पे जहाँ कोई पराया भी नहीं यूँ रहे गर्म-ए-सफ़र आलम-ए-हैरत में 'सबा' अपना दामन कभी काँटों से बचाया भी नहीं