वक़्त ख़ुद-सर है सदा अपनी ही मन-मानी करे बहता दरिया आग कर दे आग को पानी करे टूट ही जाए इलाही ये जुमूद-ए-बे-अमाँ आग बरसाए फ़लक दरिया ही तुग़्यानी करे बच्चों की सी ख़्वाहिशों में उम्र सारी कट गई तीर से चाहा था ज़ख़्मों की निगहबानी करे जिस में बाक़ी रह गई है तेरी थोड़ी सी महक ज़िंदगी उस एक लम्हे में ही ज़िंदानी करे दश्त-ए-बे-पायाँ में इक तन्हा मुसाफ़िर हूँ 'सबा' जाने मेरा हश्र क्या ग़ौल-ए-बयाबानी करे