यूँ तो मुश्किल था तिरे साथ गुज़ारा करना पर मिरे बस में न था तुझ से किनारा करना जाँ हथेली पे धरे दौड़े चले आएँगे बस हमें सुब्ह-ए-वतन एक इशारा करना एक ही शख़्स से कई बार मोहब्बत की है इस को कहते हैं मिरी जान ख़सारा करना याद अब तक मुझे आता है शब-ए-तन्हाई वो तिरा मुझ को सू-ए-दश्त पुकारा करना इक नज़र मुझ पे भी हो अर्ज़-ओ-समा के मालिक तेरी क़ुदरत में है पत्थर को सितारा करना चाँद किस बात की है तुझ में अकड़ बोल ज़रा शाह-ए-तैबा ज़रा उंगली का इशारा करना इस त'अल्लुक़ को मिरे पाँव की बेड़ी न समझ मुझ को आता है मिरे दोस्त किनारा करना मैं कि सहरा भी हूँ दरिया भी हूँ जंगल भी हूँ मुझ को जिस नाम से मर्ज़ी है पुकारा करना मैं मुकम्मल था तो धुत्कार दिया था तू ने अब अधूरा हूँ अधूरे पे गुज़ारा करना अपने हाथों पे लिए बैठे हो आँखें 'दाएम' किस ने बोला था सर-ए-तूर नज़ारा करना