यूँ ज़िंदगी के मरहले दुश्वार हो गए गुलशन के फूल मेरे लिए ख़ार हो गए सूरज मिरे उरूज का जब डूबने लगा अपने तमाम लोग ही बे-ज़ार हो गए वारफ़्तगी-ए-शौक़ का ए'जाज़ देखिए शो'ले हमारे हक़ में भी गुलज़ार हो गए मैदान-ए-कार-ज़ार में जो कुछ न कर सके महफ़िल में वो भी ग़ाज़ी-ए-गुफ़्तार हो गए चाहा था रस्म-ओ-राह बढ़े उन से पर 'मजीद' हालात अपने बीच की दीवार हो गए