घर मेरे आते आते वो दिलबर पलट गया वो क्या पलट गया कि मुक़द्दर पलट गया हंगाम-ए-क़त्ल देखने पाए न शक्ल हम तलवार मार कर वो सितमगर पलट गया मुझ से फ़क़ीर को न दिया चैन इश्क़ ने तकिया उलट गया कभी बिस्तर पलट गया ऐ यार देख कर तिरी क़ामत की रास्ती गुलज़ार में हर एक सनोबर पलट गया नाराज़ हो के फिर जो गए तुम शब-ए-विसाल मेरा नसीब ऐ मह-ए-अनवर पलट गया आँखें फिरा के तुम ने दिखाया जो ख़ाल-ओ-ख़द बरहम कचहरी हो गई दफ़्तर पलट गया क्या सर-निगूँ ज़माना हुआ मेरे सामने सर पर हर एक शाह के अफ़सर पलट गया