यूँही कोई मिल गया था सर-ए-राह चलते चलते By फ़िल्मी शेर, Ghazal << बारहा डूब के हर बार उभर आ... या दिल की सुनो दुनिया वाल... >> यूँही कोई मिल गया था सर-ए-राह चलते चलते वहीं थम के रह गई है मिरी रात ढलते ढलते जो कही गई है मुझ से वो ज़माना कह रहा है कि फ़साना बन गई है मिरी बात टलते टलते शब-ए-इंतिज़ार आख़िर कभी होगी मुख़्तसर भी ये चराग़ बुझ रहे हैं मिरे साथ जलते जलते Share on: