ज़बाँ मिले तो हज़ार बातें कहा करें हम सदा का रिश्ता ही टूट जाए तो क्या करें हम ये शहर-ए-शीशा तो शहर-ए-ना-आश्ना है प्यारे किसे पुकारें यहाँ किसे आश्ना करें हम अगर ख़ुदा तक पहुँच सके हर्फ़-ए-ना-रसाई तो अर्श तक भी बुलंद दस्त-ए-दुआ' करें हम यहाँ मसीहा के काम ही जब दुआ न आई दुआ करें अब तो किस की ख़ातिर दुआ करें हम अब उन के हाथों कफ़न का एहसाँ भी क्यों उठाएँ शहादतों के लहू से रंगीं क़बा करें हम कोई किसी को न दे सके तान-ए-ना-रसाई जो क़र्ज़-ए-जाँ है वो मर के वा'दा वफ़ा करें हम हम अपना क़ातिल ख़ुद अपने ही आइने में देखें अगर कभी अपनी ज़ात का सामना करें हम महक उठे कर्बला से अपने वतन तक आए कुछ ऐसे ज़िंदा वो क़िस्सा-ए-कर्बला करें हम वो जिस की ख़ुशबू अबद अबद तक रहे सलामत इक ऐसा नामा रक़म सफ़ीर-ए-सबा करें हम वो जिस अदा से उरूस-ए-फ़र्दा को तू ने चूमा निसार उस पर हर इक अदा ख़ुश-अदा करें हम 'जमील' सब से अज़ीम-तर इस सदी का ग़म है सभी को अब इस के इश्क़ में मुब्तला करें हम