ऐ जज़्ब-ए-दिल वो दिन तो मयस्सर ख़ुदा करे मेरे लिए वो हाथ उठा कर दुआ करे मैं जान दूँ वफ़ा से वो मुझ पर जफ़ा करे मरना तो मेरा अपने ही दर पर रवा करे पामाल शौक़ से दिल-ए-आशिक़ किया करे ये भी तमाशा शोख़ी-ए-रंग-ए-हिना करे हुस्न-ए-बुताँ में शान-ए-इलाही है क्या कहूँ बैठे न बुत-कदे में फ़िदाई तो क्या करे इस नाज़नीं से कह दे कि बन जाए नूर-ए-जाँ आँखों में आए का'बा-ए-दिल में रहा करे हालत को मेरी सुन के अजब नाज़ से सनम कहता है मुझ को ग़म नहीं कोई मिरा करे देखे मिरे सनम को तो रोहबान-ए-इश्क़ भी सल्ले-अला कहे कभी शुक्र-ए-ख़ुदा करे कह देना उन के तालिब-ए-दीदार से यही मिरअत के दिल में सूरत-ए-हैरत रहा करे इस आरज़ू ने मुझ को बुलाया है ख़ाक में ता मुश्त-ए-ख़ाक को मिरे वो नक़्श-ए-पा करे पूछा था मैं ने क़ैस से जा कर ये दश्त में जिस में न होए सब्र-ओ-तहम्मुल वो क्या करे बोला वो हँस के जी से गुज़रना ही ख़ूब है इस इब्तिदा-ए-इश्क़ की यूँ इंतिहा करे फ़स्ल-ए-बहार आई है मुझ को न रोकिए जाता हूँ अब तो दश्त में कुछ भी हुआ करे तस्वीर-ए-यार दिल में 'जमीला' लिए रहो का'बे में जा के आशिक़-ए-नाशाद क्या करे