ज़ब्त की हार दिल-ए-ज़ार न होने पाए देख रुस्वा तिरा किरदार न होने पाए बाग़बाँ ये भी है तज़ईन-ए-चमन का हिस्सा गुल के पहलू से जुदा ख़ार न होने पाए बात ख़ुद करते हैं तकरार की उस पर ये सितम ख़ुद ही कहते हैं कि तकरार न होने पाए रिंद चौंकेंगे तो मयख़ाने की फिर ख़ैर नहीं देख साक़ी कोई हुशियार न होने पाए ऐ नसीम-ए-सहरी और ज़रा आहिस्ता हुस्न ख़्वाबीदा है बेदार न होने पाए उन के जलवों में इस अंदाज़ की ताबानी है सामने आएँ तो दीदार न होने पाए है मोहब्बत में यही शर्त-ए-मोहब्बत 'ज़ाकिर' रंज हो रंज का इज़हार न होने पाए