पाई हमेशा रेत भँवर काटने के बा'द तिश्ना-लबी का लम्बा सफ़र काटने के बा'द कुछ ऐसे कम-नज़र भी मुसाफ़िर हमें मिले जो साया ढूँडते हैं शजर काटने के बा'द फ़न की हमारे आज भी शोहरत है हर तरफ़ वो मुतमइन था दस्त-ए-हुनर काटने के बा'द उतरी हुई है धूप बदन के हिसार में क़ुर्बत के फ़ासलों का सफ़र काटने के बा'द शेवा तो ज़ब्त का है मगर क्या करूँ 'ज़फ़र' बढ़ती है प्यास और भी सर काटने के बा'द