ज़ाहिर की आँख से न तमाशा करे कोई ये दिल है इस को दिल से ही देखा करे कोई शोर-ए-कमाल-ए-हुस्न है रुस्वाई-ए-निगाह फिर क्यों तुम्हारे हुस्न का चर्चा करे कोई बस इक निगाह-ए-मेहर-ओ-मुदावात के एवज़ मैं जान बेचता हूँ ये सौदा करे कोई क्या इस शब-ए-फ़िराक़ की कोई सहर नहीं कब तक तुम्हारे हिज्र में तड़पा करे कोई