दिल का ग़म आश्कार करता है जान कोई निसार करता है तुम को मालूम है कोई इंसान तुम को ख़ामोश प्यार करता है मौसम-ए-हिज्र में उसे देखो इंतिज़ार-ए-बहार करता है मेरा दुश्मन है दोस्त से बेहतर सामने से तो वार करता है जिस के साए में रोज़ मिलते थे वो शजर इंतिज़ार करता है