ज़हर दे कर मुझे सीने से लगाने वाले कितने मासूम हैं दिल तोड़ के जाने वाले लब पे मेरे जो तबस्सुम कभी दिख जाता है बात क्या क्या न बनाते हैं ज़माने वाले हर चमकती हुई शय पे न लुटाना जज़्बात प्यार करते नहीं सब लोग लुभाने वाले जबकि हर चीज़ की चोरी की सजा होती है जान बन जाते हैं क्यों दिल को चुराने वाले रूठना हो जो किसी से तो समझ लेना ये बात अब कहाँ मिलते हैं मिन्नत से मनाने वाले बारहा पूछ के अहवाल मिरा जाने क्यों ज़ख़्म को छेड़ ही जाते है ज़माने वाले जब भी इक चोट नई दिल पे लगाता है कोई याद आते हैं मुझे दर्द पुराने वाले