तू बेवफ़ा है तिरा ए'तिबार कौन करे तमाम उम्र तिरा इंतिज़ार कौन करे बहुत दिनों से मैं ख़ुश-फ़हमी-ए-विसाल में हूँ जो तू नहीं तो मुझे बे-क़रार कौन करे सुनाएँ हाल भी दिल का अगर सुने कोई सुने न जब कोई चीख़-ओ-पुकार कौन करे वो आए या कि न आए ये उस की है मर्ज़ी शुमार-ए-गर्दिश-ए-लैल-ओ-नहार कौन करे जो मैं भी सब की तरह बस तिरे क़सीदे लिखूँ इलाज-ए-बरहमी-ए-रोज़गार कौन करे अगर नसीब में 'ज़ैग़म' ख़िज़ाँ ही लिक्खी हो तो फिर जहाँ में तलाश-ए-बहार कौन करे