ज़ख़्म है सीना अभी तलवार है एहसास अभी कुछ न कुछ जीने का सरमाया है मेरे पास अभी साँस रोके सुन रहा है वक़्त उन का फ़ैसला उठती झुकती वो निगाहें आस अभी हैं यास अभी बर्फ़ की सिल है कभी दिल और कभी शो'ले की लौ इस बयाबाँ को कोई मौसम न आया रास अभी हद से बढ़ जाए तो फिर दरिया की कुछ हस्ती नहीं साहिल-ए-ममनूअ' पर दम तोड़ती है प्यास अभी शहर-ए-जाँ तेरी तरफ़ अब भी खिंचा जाता है दिल तेरी गलियों में है अगले दौर की बू-बास अभी गूँजती है दिल में अब भी कोई गुम-गश्ता सदा हम को 'क़ैसी' है शिकस्त-ए-आरज़ू का पास अभी