ये समुंदर पे बरसता पानी हाए प्यासों को तरसता पानी आगे दीवार-ए-सिकंदर ही सही ख़ुद बना लेता है रस्ता पानी देख इन रोती हुई आँखों से शहर के शहर को डसता पानी बे-नुमू है मिरे अश्कों की तरह दश्त-ए-वीराँ पे बरसता पानी मस्लहत होगी कोई क़ातिल की हो गया ख़ून से सस्ता पानी