ज़ख़्म हर इक भर जाता है By Ghazal << बता तू ही कि तेरी याद कैस... सफ़्हों की क़ैद से उन्हें... >> ज़ख़्म हर इक भर जाता है वक़्त सही जब आता है सूरज छुप जाने के बाद इक जुगनूँ शरमाता है करता है जन्नत जन्नत धरती पर मर जाता है अब तो सिर्फ़ अंधेरा ही राह हमें दिखलाता है कोई पूछे मुझ से भी मुझ को भी कुछ भाता है जब से टूटा दरवाज़ा हर कोई आता जाता है Share on: